लोकगाथा: गौरा महेष्वर 3
चनरमा का देखी माई रात को हिटनूँ।
नंदि बगै देखि माई पाप लागी जालो।
त्वे जोगी का दिना है त ईश्वर का द्यूँलो।
ईश्वर को पूत हूँ लो मैंई महेसर।
खुद हिटि किलै द्यूँ लो सूडा हिटि द्यूँलो।
त्यर मन पड़ी क्वारी कन्या ग्वाली मैई हूँलो।
गँवरा मैंसर ब्याई हुना कैले नी जाण्यो।
काँ रे पूजी लौली गँवरा काँ रे भ्यो उज्यालो।
छिना पूजी लौलि गँवरा डाँणा म्यो उज्यालो।
डाँणा पूजी लौलि गँवरा पटाङण उज्यालो।
पटाङण पूजी लौली गँवरा खोलीभ्यो उज्यालो।
खोली पूजी लौली गँवरा भीतर उज्यालो।
काँ त्वीलै गँवरा रै बासो लीछ काँ पड़ि न हो रात?
हिमाचल काँठी रैबासो लीछ बसुधारा पड़िगे रात।
ऐल फोड़ूँ तेरि हिमाचल काँठी भोल सुखूँ वसुधार।
नीमुवाँ डाली रैबासो लीछ बसुधारा पड़िग रात।
क्रमशः