उत्तराखण्ड: पहाड़ी भाषा:
इसमें कोई संदेह नहीं कि मध्य पहाड़ी पर दरद-खस
या पैषाची का प्रभाव परिलक्षित होता है, पर इसका
अर्थ यह नहीं कि मध्य पहाड़ी का विकास दरद-खस
या पैषाची से हुआ है। कुमाउनी की भाषिक संरचना
पर विचार करके यह निष्कर्ष प्राप्त होता है कि उसका
विकास उसी षौरसेनी अपभ्रंष से हुआ है, जो नव्य
भारतीय आर्य भाषाओं की विकास श्रृंखला का एक
विषिष्ट सोपान है।
पहाड़ी भाषा समुदाय हिमाचल प्रदेष के भद्रवाह के उत्तर-
पष्चिम से लेकर नेपाल के पूर्वी भाग तक विस्तृत है।
इसके तीन रूप प्रमुख हैं – पूर्वी, पष्चिमी व मध्य। पूर्वी
पहाड़ी नेपाल में बोली जाती है, पष्चिमी पहाड़ी हिमाचल
प्रदेष में प्रयुक्त होती है और मध्य पहाड़ी उत्तराखण्ड में
व्यवहृत होती है। मध्य पहाड़ी के अंतर्गत गढ़वाल में
गढ़वाली तथा कुमाउं में कुमाउनी भाषाएं प्रचलित हैं।
ऐसा अनुमान अवष्य लगाया जा सकता है कि षौरसेनी
पैषाची के समान ही षौरसेनी का कोई और पर्वतीय रूप
भी रहा होगा। वास्तव में मध्य और पूर्वी पहाड़ी का मूल
कोई खष, दरद या पैषाची प्राकृत नहीं है। वे स्पष्टतः
षौरसेनी से संबंधित हैं। मध्य पहाड़ी की मूलभित्ति षौरसेनी
की है।