गजल : सोचा जाए :
अपने कल के बारे में सोचा जाए
अब जंगल के बारे में सोचा जाए
रोटी के बारे में काफ़ी सोच चुके
निर्मल जल के बारे में सोचा जाए
ताजी हवा सवाल बन रही षहरों में
उसके हल के बारे में सोचा जाए
जिनकी चिकनी चुपड़ी अच्छी लगती है
उनके छल के बारे में सोचा जाए