लोकगाथा: गौरा महेष्वर 2
जानाजाना महेसर गुसैं बाबाज्यु का घर।
बाबाज्यु का मोल थें गुसें अलख जगायो।
दीय दीय मैंना माई हमन भिच्या दीय।
छोड़-‘छोड़ जोगी बाटो, भिच्या ल्यायूँ छोड़।
क्यैकि भिज्या ल्याई माई क्याकि भिच्या छोडूँ?
एक बाली सूँ तूँ ल्यायूँ एक बाली रूपो।
तेरो जसो सूँ तूँ ल्यायूँ एक बाली रूपो।
तेरो जसो सूँ तूँ रुपो हमारा घरै छ।
नल्यूँ तेरी सूँ तूँ डाली नल्यूँ तेरो रुपो।
अन विदो जोगी आयो भिच्या न समूँ तूँ।
क्यैकि भिच्या माँगछा जोगी क्यैकि भिच्या द्यूँलो?
तुमरा घर बाली कन्या हमर देला की?
घुसरो-फुसरो जोगी बड़ी भिच्या को आड़ी।
ले जोगी का दिना है त सूरिज का द्यूँलो।
सूरिजै का देखी माई जलै मारी देखो।
त्वे जोगी का दिया है त चमरमा का द्यूँलो।
क्रमशः