उत्तराखण्ड: वर्गीकरण:
‘भारत का भाषा सर्वेक्षण’ के लेखक ग्रियर्सन ने भारतीय
आर्य भाषाओं को तीन उपषाखाओं में विभाजित किया –
बहिरंग, अंतरंग और मध्यवर्ती। इन तीनों उपषाखाओं में
6 भाषा समुदायों तथा 17 भाषाओं की गणना की गई है।
इस वर्गीकरण में कुमाउनी/गढ़वाली अर्थात् मध्य पहाड़ी को
मध्यवर्ती उपषाखा के पहाड़ी भाषा समुदाय में स्थान दिया
गया है।
डाॅ0 सुनीति कुमार चटर्जी ने इस मत की विस्तृत आलोचना
के बाद भारतीय आर्य भाषाओं का जो वर्गीकरण प्रस्तुत किया,
उसमें कुमाउनी के संदर्भ में यह इंगित है कि कष्मीरी की भांति
पहाड़ी भाषाओं का मूलाधार पैषाची, दरद या खस है; जिसे
मध्यकाल में राजस्थान की प्राकृत-अपभ्रंष ने प्रभावित किया।
संभव है कि उन्होंने पष्चिमी पहाड़ी पर दरद या पैषाची के
प्रभाव को ध्यान में रखते हुए ऐसा माना हो। वस्तुतः पहाड़ी
भाषा समुदाय के अंतर्गत आने वाली पष्चिमी पहाड़ी की
बोलियां मध्य पहाड़ी की बोलियों से सर्वथा पृथक् है।
पष्चिमी पहाड़ी अनेक बोलियों का समुदाय है। भौगोलिक दृष्टि
से पष्चिमी पहाड़ी की मुख्य बोली जौनसारी है। इसका क्षेत्र उत्तर
प्रदेष के जौनसार भाबर क्षेत्र से लेकर षिमला, कुल्लू, मनाली,
चंबा तथा कष्मीर के कुछ भागों तक विस्तृत है। जौनसारी के
अतिरिक्त चम्याली आदि पष्चिमी पहाड़ी की अन्य बोलियां हैं।
पष्चिमी पहाड़ी टकरी अथवा तक्करी लिपि में लिखी जाती है।