सिनेमा: शिल्प में सुधार:
पौराणिक तथा ऐतिहासिक फिल्मों के अलावा 1921 से
1930 की अवधि में बनी अन्य सामाजिक / राजनीतिक
चेतना से उत्प्रेरित फिल्मों में इंगलैंड रिटर्न – 1921,
टाइपिस्ट गर्ल व सवकारी पाश – 1926, गुण सुंदरी –
1927, भिखारन और प्रपंचपाश – 1929, सिनेमा गर्ल
एवं औरत का बदला – 1930 के नाम मशहूर हुए।
1925 के बाद भारतीय सिनेमा के इतिहास में मूक फिल्मों
का स्वर्ण युग प्रारंभ होता है। 1925 से 1930 के मध्य
अधिकतर ऐतिहासिक फिल्मों का प्रदर्शन किया गया। इस
बीच खास तौर से महाराष्ट्र के कतिपय वीर मराठों और
राजस्थान के कुछ लोकप्रिय प्रणय प्रसंगों पर ऐतिहासिक
फिल्मों का निर्माण हुआ। इन फिल्मों में आर. जी. तोर्णे
की पृथ्वीवल्लभ, ग्रेट ईस्टर्न फिल्म कार्पोरेशन की अनारकली,
प्रभात फिल्म कंपनी पूना की उदयकाल, रंजीत मूवीटोन की
राजपूतानी, मोन भवनानी की बसंतसेना, ब्रिटिश डोमीनियन
फिल्म कंपनी कलकत्ता की चित्तौड़ की पद्मिनी आदि के नाम
विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं।
एक और ध्यान देने वाली बात यह भी है कि इन फिल्मों के
शिल्प में विगत दशक की अपेक्षा धीरे धीरे सुधार होता हुआ
नजर आता है। 1930 में देश के विभिन्न क्षेत्रों के अभिनेता,
नर्तक, छायाकार, कथाकार आदि मुंबई के फिल्मोद्योग की
ओर आकर्षित होने लगे थे। पूना के राष्ट्रीय फिल्म अभिलेखागार
के अनुसार भारत में कुल मिलाकर 1268 मूक फिल्में बनीं।