02 – पौराणिक:
कुमाऊं में जागर गाथाओं की पृष्ठभूमि के रूप में अथवा
कृषि संबंधी ‘हुड़की बौल’ गायन के अंतर्गत पौराणिक
गाथाएं प्रचलित हैं, जिन्हें गायक महाभारत लगाना कहते हैं।
इनमें महाभारत के अतिरिक्त रामकृष्ण संबंधी, शिव संबंधी
अथवा चौबीस अवतार संबंधी वर्णन गाए जाते हैं।
जागर गाथा गायन के तीन चरणों में ‘जगरिया’ अर्थात्
गायक सर्वप्रथम समस्त प्राकृतिक एवं आधिभौतिक सत्ताओं
को जगाते हुए अभिप्रेत देव को आमंत्रित करता है। दूसरे
चरण में देवावतरण की पृष्ठभूमि बनाने के लिए राम, कृष्ण,
षिव आदि धर्मावतारों की पौराणिक गाथाएं गाई जाती हैं। तीसरे
चरण में अभिप्रेत देव की कथा और पूजन वंदन का विधान चलता है –
लोकगाथा: गौरा महेष्वर 1
षिखर पूरा ठंडा पाँणी मैंसर उपजयो।
गंगा टाटु बल वोट लोलि उपजि।
नंदि का किनार लौलि गौवा चराली।
नंदि पार मैसर गुसें नंदि का किनार।
कै कि छै तु चेली-बेटि कै गौवा चरुँछे?
बाबु हमारा मेघा मंडल मैया में ना छन।
तुमि जति बालि कन्या हमर आलि कि?
बाबाज्यू जै दला कितकिलै कि नीं ऊँलो।
रत्ते आये मैंसर गुसैं अलख जगाए।
को रे बाटो जाँछ लौलि त्यर बाबु घर?
भूमि बाटो जाँछ गुसैं बाबाज्यू का घर।
बाबाज्यु का गोल में होलो सिरिखण्ड रूख।
बाबाज्य् का मोल थें गुसैं अलख जगाए।
सूँ नूँ को अटकण होलो गूँ नूँ को पटकण।
रूणा का दुवार होला सूँ ना का किवाड़।
तति उठी मैंसर गुसें बाटा लागिन ग्वान।
क्रमशः