लोकगीत : स्त्री संवाद:
इनमें मां-बेटी, सास-बहू, जेठानी-देवरानी,
ननद-भाभी, सखी-सहेली आदि के संवाद होते हैं।
ननद-भाभी के वार्तालाप पर आधारित एक गीत –
भाभी: नन्दू तेरो दादू कां जायूं छ
ननद: दादू चमार वती जायूं छ
दादू पोलिया मोल लेनो छ
भौजी धुतुकै हंसनै छ
भाभी: नन्दू तेरो दादू कां जायूं छ
ननद: दादू बनिया वती जायूं छ
छादू घघिया मोल लेनो छ
भौजी धुतुकै हंसनै छ
भाभी: नन्दू तेरो दादू कां जायूं छ
ननद: दादू सुनार वती जायूं छ
दादू नथुली मोल लेनो छ
भौजी धुतुकै हंसनै छ ….
सास- बहू के गीतों में ऐसे प्रसंगों का प्रायः अभाव है,
जहां सास उसके सुख-दुख का ध्यान रखती हो। इनमें
दारुनियां सास का वही व्यवहार वर्णित है, जिसे पुरानी
चाल-ढाल की बहू चुपचाप सह लेती थी। किंतु अब
सामाजिक चेतना के फलस्वरूप वह कहीं सास की आज्ञा
का उल्लंघन भी करती है। जैसे एक गीत में सास ने किताब
पढ़ती हुई बहू से कहा कि भैंस को जाकर घास दे आओ,
पानी भर लाओ। बहू ने कहा कि बीच में मत बोलो, झगड़ा
हो जाएगा। मैं अपने मायके में सात बजे सोकर उठती थी।
वहां खाने को दाल भात मिलता था। यहां मडुवा की रोटी
और सिसूण का साग खिलाती हो।