उत्तराखण्ड: नागर साहित्य:
भारत का प्राचीनतम साहित्य ऋग्वेद में उपलब्ध होता है।
ऋग्वेद की भाषा ही आर्यों के धार्मिक अनुष्ठानों की भाषा
थी। इस भाषा को वैदिक संस्कृत कहा जाता है। वैदिक
संस्कृत की ध्वनियां उच्चारण की दृष्टि से बहुत क्लिष्ट
थीं और व्याकरण की दृष्टि से इसके रूप पर्याप्त संष्लिष्ट
थे, परंतु समय बीतने के साथ-साथ वैदिक संस्कृत के
उच्चारण तथा व्याकरण में परिवर्तन के लक्षण दिखाई देने
लगे।
अनार्यों तथा अन्य भाषा-भाषियों के साथ पारस्परिक सहयोग
और व्यावहारिक संबंध स्थापित होने के परिणामस्वरूप वैदिक
संस्कृत की संरचना में षिथिलता आने लगी तथा क्षेत्रीय प्रभावों
के कारण इसके विविध रूप विकसित होने लगे। परिवर्तन के
इस क्रम में वैदिक संस्कृत के उपरांत लौकिक संस्कृत, पालि,
प्राकृत व अपभ्रंष से आधुनिक भारतीय आर्य भाषाओं का उद्भव
हुआ।
आधुनिक भारतीय आर्य भाषाओं का अनुषीलन करने के अनंतर
डाॅ0 हार्नले ने 1880 ई0 में यह सिद्धांत प्रतिपादित किया कि
भारत में दो बार आर्याें का आगमन हुआ। जो पहले आए उन्हें
पूर्वागत तथा जो बाद में आए उन्हें नवागत मानकर डाॅ0 हार्नले
ने पूर्वागतों की भाषा को बाहरी उपषाखा और नवागतों की भाषा
को भीतरी उपषाखा नाम दिया।