सिनेमा: भक्त विदुर:
1921 में निर्मित ‘भक्त विदुर’ भारत की वह पहली मूक
फिल्म जिस पर नायक की गांधी जी से मिलती जुलती छबि
के कारण बैन / प्रतिबंध लगाया गया था।
बीसवीं शती के दूसरे दशक । 1913-1920। की मूक फिल्मों
का पटकथा शिल्प अविकसित और पारसी रंगमंच के नाटकीय
प्रभाव से आच्छादित कहा जाता है। फिल्म कंपनियों के सभी
कर्मचारियों को मासिक वेतन दिया जाता था और वे अत्यंत
सौहार्द्रपूर्ण वातावरण में रहते हुए पूरी निष्ठा के साथ अपना
अपना काम किया करते थे। फिल्मों में काम करने के लिए
व्यावसायिक रंगमंचों से जुड़े कलाकार ही आमंत्रित किए जाते
थे, क्योंकि अभिजन समाज में फिल्मों में अभिनय का कार्य
सम्मानजनक नहीं माना जाता था।
इस दशक में मुख्यतः पौराणिक फिल्मों का अधिक निर्माण हुआ,
जिनमें मोहिनी भस्मासुर व सत्यवान सावित्री-1914, कीचक-
1915, श्रीकृष्ण जन्म-1917, सीता स्वयंवर-1918, कालिया
मर्दन, लंका दहन, और राम बनवास-1919, शकुंतला व नल
दमयंती-1920 विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं।
तीसरे दशक की फिल्मों में सुरेखा हरण-1921, श्रीकृष्ण अवतार
व सेतु बंधन-1923, सती पद्मिनी- 1924, द्वारिकाधीश-1925,
भक्त प्रह्लाद-1926, भक्त सुदामा, जय भवानी और रुक्मिणी
हरण-1927, सीताहरण, गोपाल कृष्ण तथा श्रवण कुमार-1928,
कृष्णावतार, राधा, संत ज्ञानेश्वर एवं गोपालकृष्ण-1929 के बाद
विश्वामित्र, विष्णुशक्ति, नृसिंह अवतार, पृथ्वीपुत्र व बालगोपाल-
1930 प्रमुख हैं।