लोककथा: रोटी गिण गिण :
हिंदी अनुवाद:
पौ भी न फटी थी कि ब्राह्मण नहा-धोकर ऊँचे स्वर से
मंत्र-पाठ कर पूजा करने लगा। जब राजा का दरबार लगा
तो ब्राह्मण को भी बुलाया गया, खोये हुए हार की गणना
के निमित्त। ब्राह्मण ने चावल के दाने हाथ में लेकर उछाले।
उन्हें दांए हाथ मेें लिया, फिर बांए हाथ में रखा, और तब
बोलाः ”आठ रोटियों की सोलह बार छ्यां की आवाज, चार
यहाँ हैं, चार कहाँ हैं। बैल खोया तो गन्ने के खेत में मिल
गया, खोया हुआ घोड़ा दूब के मैदान में मिला, और खोया
हुआ हार मिल जावेगा घड़े के नीचे। देख लो अमुक कमरे में
घड़े के नीचे।“ राजा ने स्वयं उस कक्ष में जाकर घड़े के नीचे
देखा तो हार सचमुच वहीं पर था।
लौट कर राजा ब्राह्मण से बोला ”पण्डित जी, आपने बिल्कुल
सही गणना की। अब यह बताइए कि मेरी मुट्ठी में क्या है।
तब मैं भी मान जाऊँगा कि आपके षरीर में साक्षात् देवता का
आवेष उतरता है।“ अब तो ब्राह्मण ने जान लिया कि उसकी
भी पिनगटुवा (टिड्डे) की ही सी मौत होने वाली है। जिस तरह
टिड्डा किसी के भी पांवों तले आ जाने से कुचला जाता है, वैसे
ही उसे भी एक तुच्छ कीड़े की तरह मरना होगा।
भय से बेचारे के षरीर में कंपकंपी होने लगी और चीख उठाः
”आठ रोटियों की सोलह बार छ्यां की आवाज, चार यहाँ हैं
चार कहाँ? बैल खोया तो गन्ने के खेत में मिल गया, खोया
हुआ घोड़ा दूब के मैदान में मिला, हार खोया तो घड़े के नीचे
मिल गया, अब आ गई है टिड्डे की मौत।’’ राजा आष्चर्य
चकित हो देखता ही रह गया।
राजा की मुट्ठी में एक टिड्डा ही बंद था। ऐसे भविष्य दृष्टा को
राजा पुरस्कार न देता तो और किसे देता। रोटियाँ गिन गिन ज्योतिषी
बना ब्राह्मण पुरस्कार में जागीर प्राप्त कर प्रसन्न होकर अपने घर
लौटा। बना रहे राजा का राज्य और सुखी रहे प्रजानन।