कुमैयाॅं:

kumaiyaan

लोकभाषा: कुमैयाॅं:

कुमैयाँ समाज की पृथकता इसी तथ्य से उजागर होती है कि
वे एक सामान्य परन्तु विशिष्ट भाषा मूल के लोग हैं। अयोध्या
से आये हुए कत्यूरियों, इलाहाबाद से आए हुए चन्दों, विदेशों
से आये हुए मुगलों तथा अंग्रेजों की अपनी-अपनी भाषाएँ थीं,
जिनमें कुमाउनी में दीर्घावधि राजकाज चला और इनका जन-
मानस पर भी पर्याप्त प्रभाव पड़ा ; पर कुछ ध्वनियों, शब्दों
या रूपों के आधार पर भाषा साम्य घोषित करते हुए कुमाऊँ की
मूल बोली को किसी प्रकार की कोई चुनौती नहीं दी जा सकती।

स्मरणीय है कि कोई शासन या शासक अपनी प्रजा को नई भाषा
तो सिखा सकता है, पर उससे उसकी लोक भाषा नहीं छीन सकता।
लोक भाषायें आसानी से लुप्त नहीं होती, क्योंकि उनकी अपनी जड़ें
होती हैं, अपना ढाँचा होता है।

चम्पावत में भिन्न-भिन्न सभ्यताओं और संस्कृतियों वाले अनेक
प्रकार के लोग आकर बसते रहे हैं। अतः कुमैयाँ का शब्द भण्डार भी
विविध स्रोतों से आने वाले शब्दों से समृद्ध होता रहा है। कुमैयाँ की
शब्द संपदा को रचना की दृष्टि से दो भागों में विभाजित किया
जाता हैः- (क्रमशः)

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Published by

Dr. Harishchandra Pathak

Retired Hindi Professor / Researcher / Author / Writer / Lyricist

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