लोकगीत: संवाद प्रधान :
इस श्रेणी के अंतर्गत वे सभी गीत सम्मिलित हैं जिनकी
षैली वर्णनात्मक न होकर संवाद प्रधान है। इन गीतों की
प्रमुख विषेषता कथावस्तु का प्रस्तुतीकरण गीत में वर्णित
पात्रों संवादों के माध्यम से किया जाना है।1
ये गीत संवादों द्वारा विकसित होते हैं। इनमें प्रेम के
अतिरिक्त समसामयिक विषय भी पाए जाते हैं। कुछ
गीतों में किसी ऐतिहासिक घटना के कथानक को संवादों
के माध्यम से व्यक्त किया गया है। स्थानीय महत्व की
कुछ घटनाएं भी इन गीतों की विषयवस्तु बनी हैं। सामाजिक
जीवन के विभिन्न पहलुओं को भी इन गीतों में विविध
दृष्टिकोणों से देखा गया है। कथ्य के अनुसार कुछ गीत
करुणा प्रधान हैं, कुछ में हास-परिहास का पुट है, कुछ
में सामाजिक विसंगतियों पर कटाक्ष किया गया है तो कुछ
में किसी चरित्र की विषेषताओं पर प्रकाष डाला गया है।
इन्हें तीन भागों में बांटा जाता है –
स्त्री-पुरुष संवाद:
इनमें नायक-नायिका, देवर-भाभी, जीजा-साली आदि के
संवाद होते हैं। जीजा-साली के संवादों वाला एक गीत इस प्रकार है –
जीजा: मालन जौंल मंगसीर माह पलटूंल चैत
तुमि न हामि साली सुरमा कब होली भेंट
साली: तुमि न हामि सुन भीना जैसिंग चंपा चोड़री भंेट
मालन जाले भीना जैसिंग किया किया ल्होले
जीजा: त्वेकी मैं ल्हौंल साली सुरमा गाठी को नेवर
साली: मालन जाले भीना जैसिंग किया किया ल्होले
जीजा: त्वेकी मैं ल्हौंल साली सुरमा कानै की गोखर ….