गजल : देख :
ए दोस्त ज़िन्दगी की तरफ मुस्करा के देख
ये ख़्वाब में डूबी हुई नजरें उठा के देख
ये देख तेरी चाह तेरे सामने खड़ी
एक बार हकीकत को जरा आजमा के देख
लुट-लुट के बढ़ा करती है जज़्ाबात की दौलत
इस लूट में शामिल हो कभी दिल लगा के देख
गैरों का सा बर्ताव किया करते हैं अपने
इस बार किसी गैर को अपना बना के देख