लोकगीत : सद्भाव:
इस प्रकार प्रारंभ होकर ये बैर काफी देर तक चलते हैं और अंत
में दोनों बैरिया परस्पर मंगलकामना करते हुए विदा लेते हैं-
पहला गायक:
एक नसी कैकी नि रै उरिए उधान
के त्वेले मुनइ मारूं हिरदया परान
त्यारा गौं की पधानी जी रौ म्यर गौं का पधान
यो मेरी आषीष त्वे हूं, हा……
दूसरा गायक:
खोटी मती कुड़ी आग ओ म्यारा हौंसिया
पुरुखा हे पुरुखा भागी सांची जै कूंछिया
के त्वेले मुनइ मारूं भोट को भोटिया
त्यारा गौं की बाकरि जी रौ म्यर गौं को बोकिया
यो मेरी आषीष त्वे हूं, हिर दा रे हौंसिया!