उत्तराखण्ड : लोक जीवन:
कुमाऊं के लोक जीवन पर उसके सीमावर्ती क्षेत्रों का प्रभाव
भी परिलक्षित होता है। उत्तर में व्यापारिक संबंधों के कारण
कुमाऊं के जोहार क्षेत्र की भाषा और संस्कृति में तिब्बती पुट
स्पष्टतः दृष्टिगोचर होता है। इसी तरह कुमाऊं के पूर्वी
सीमा क्षेत्र पर नेपाल के रहन-सहन और पष्चिमी सीमा
क्षेत्र पर गढ़वाल के आचार-विचार का न्यूनाधिक प्रभाव
परिलक्षित होता है।
कुमाऊं में मुख्य रूप से कुमाउनी तथा हिंदी भाषाओं का
बोलबाला है। कुमाऊं के सीमावर्ती क्षेत्रों की बोलियों का
सीमापार की बोलियों से प्रभावित होना अस्वाभाविक नहीं,
अतः कुमाऊं की पूर्वी, पष्चिमी और मध्यवर्ती भागों की
बोलियों में अंतर पाया जाता है और सुदूर क्षेत्रों में हिंदी
भी वहां की बोली की लय-तान में ही बोली जाती है।
दक्षिण के तराई भाबर के जंगलों में राजस्थान से आकर
बसी थाड़ू और बोक्सा आदि जातियों के अलावा कालांतर
में पंजाब या बांग्लादेष से आकर बसे लोगों के लोकविष्वासों
अथवा रीति रिवाजों से भी यहां पहले से रहने वाले अथवा
बाद में आकर बसने वाले कुमाऊं के लोग अनभिज्ञ नहीं है।
इनकी तरह कुमाऊं के लोक जीवन में भी तंत्र-मंत्र, जादू-टोना,
झाड़-फूंक आदि का पर्याप्त प्रचलन है।पुरुष प्रायः धोती-कुर्ता,
कुर्ता-पायजामा, षर्ट-पैण्ट, कोट-पैण्ट आदि पहनते हैं तथा
स्त्रियां मुख्यतः ब्लाउज के साथ धोती या घाघरा पहनती हैं।
मांगलिक अवसरों पर रंगाई किया हुआ पिछौड़ा पहना जाता है।
गले में गुलबंद या सूता, चांदी का चरेऊ या मूंगे की माला,
हाथों में पौंछी या कंगन, नाक में नथ या लौंग, कानों में
झुमके या कर्णफूल, पैरों में पायजेब और बिछुआ आदि
आभूषणों का प्रयोग किया जाता है।