सिनेमा: प्रयोग:
ग्रिफिथ के बाद मैकसेनेट ने रंगमंच के हास्य प्रधान दृश्यों
को कैमरे की स्थिति में परिवर्तन तथा रचनात्मक संपादन
द्वारा रोचक बनाया। मूक अभिनय के बेताज बादशाह चार्ली
चैपलिन कीे मुख मुद्राओं तथा अंग भंगिमाओं में परिवर्तन लाने
के साथ साथ उनके क्लोजअप शाॅट्स को इस तरह पेश किया
कि वह भावी फिल्मकारों के लिए अनुकरणीय बन गए।
बस्टर कीटन ने क्लोज, मिड और लौंग शाॅट्स के अतिरिक्त
ट्रेकिंग शाॅट्स के प्रभावशाली प्रयोगों से साधारण आख्यानों को
भी गतिमान बनाने में सफलता प्राप्त की।
जहां तक फिल्मों के विकास का प्रश्न है, यूरोप और अमेरिका
में पूंजीवादी संक्रमण और बाजार के एकीकरण के फलस्वरूप नए
उद्यमों के लिए स्वस्थ वातावरण तैयार हो चुका था, पर
औपनिवेशिक शिकंजों में जकड़े भारत में पूंजी के अभाव तथा
शासकीय उदासीनता का माहौल था।
उपर से तुर्रा यह कि परंपरागत विधाओं के कद्रदान सिनेमा को
उनकी बराबरी का दर्जा देने में हिचकिचा रहे थे। अभिजन समाज
फिल्मी कलाकारों को उपेक्षा की दृष्टि से देखता था, तथापि भारतीय
फिल्मकारों ने सिनेमा का एक एैसा स्वरूप विकसित किया; जो हर
तरह से स्वदेशी मनोरंजन का नया माध्यम होने के बावजूद लोकप्रिय
सिद्ध हुआ।