लोकभाषा: समन्वय:
जोहार खण्ड में प्रयुक्त भाषा अब कुमाउनी है। यद्यपि उसमें
भी तदेतर प्रयोग अवशिष्ट रह गए हैं। पहले उनकी बोलचाल
दारमा वासियों के निकट थी अर्थात् उसमें तिब्बती शब्दों की
संख्या अधिक थी। उनके कुछ पुराने शब्द थेः आदमी (मी),
बेटी (चिवै), दूध (हुमा), भात (छकु), जोगी (अचरा),
घोड़ा (ता), तरकारी (पाक), बामन (डमने)। किन्तु आज
की बोलचाल में इनका स्थान कुमाउनी/ हिन्दी शब्दों ने ग्रहण
कर लिया है।
खसों-शकों के उपरान्त वैदिक आर्य कुमाऊँ में प्रविष्ट हुए। अनु-
मान है कि वे कुरु पांचाल युग में उत्तर भारत के मैदानी भागों
से यहाँ पहुँचे होंगे। कुरु जनपद आर्यो का प्रमुख जनपद था,
जिनके आधार पर वैदिक आयों का आगमन बहुत कुछ निर्दिष्ट
किया जा सकता है। फिर भी यह स्पष्ट है कि पर्वतीय समाज
में खसों की ही प्रमुखता बनी है। मध्यकाल में यहाँ भारत के
अन्य स्थानों से ब्राह्मण, क्षत्रिय आदि जातियों का आगमन बढ़ा।
नैनीताल जिले के दक्षिणी मैदानी भागों में थारू भुक्सा आदि कई
पहाड़ी कबीलों और मैदानों से आए हुए लोग बसे हैं। इनके बीच
स्वभावतः हिन्दोस्तानी, ब्रजभाखा, कन्नौजी और पहाड़ी क्षेत्रों में
प्रचलित कुमायूँनी से मिली-जुली एक बोली विकसित हो गई है।
थारू अपना सम्बन्ध राजस्थान के राजपूतों से जोड़ते हैं तो बोक्से
धारा- नगरी के राजघराने से।