लोकगीत : बैर :
कुमाऊं के मेलों व सार्वजनिक उत्सवों में बैर गायकों की
प्रत्युत्पन्नमति का कमाल दिखाई देता है। अनेक अवसरों
पर इन्हें विषेष रूप से आमत्रित किया जाता है। पूर्वी कुमाऊं
में विवाह के दौरान मनोरंजन के लिए वर और कन्या पक्ष
की ओर से भी बैर गायकों को बुलाने का रिवाज रहा है।
वाक्चातुरी एवं कल्पना की उड़ान के कारण तर्क प्रधान गीत
लोकजन के बुद्धि विलास का सरल साधन रहे हैं; जैसे-
प्रारंभ : हा…. कटारै की खैं छ टुनमुन दैं छ
तुमरि जसि सांची तुमरा पितरन लै कै छ
यो गत है रै छ, हा……
प्रष्न : हा…. खाड़ै की रैं छ दन मनी दैं छ
त्यार मुलुक में यक स्यैणिं ख्वारा बै ब्यै रै छ
यो कसि है रै छ, हा……
उत्तर: हा…. झपकन झौ छ मौनीं जावा मौ छ
तौ त्वील गलत नि कै रे क्यावा ब्याई रौ छ
क्यावा ब्याई रौ छ, हा……
प्रष्न : हा….झुंगरै की धाण गै पुजो बधाण
पांच थान बाकरा ब्यै रईं त्यारा
पाठा द्वीए है र्यान, हा……
उत्तर: हा…. मडुवा को बाला फूटि घड़ो टाला
त्वील कौ पांच थान बाकर ब्यै रईं पाठा द्वीए है रीं
तौ त्यार बरपंद का दिन काम लागीं
लखरीरीं का पाला, हा……
प्रष्न: हा…. मैंल बाटा में यक स्यैणि यक बैग भेटौ छ
अगिल बै जाणौ छि बैग पछिल बै स्यैंणि
स्यैंणि थैं मैंल पुछ तु तैकि के लागन छी
स्यैंणि बुलाणि द्वी माणिया तौली
गाड़ मैं पड़ि गों छ होलीं कमर बै उनकै
त मैं इनरि बेऊंणि लागन छूं रे कमर माथा नौली
उनलि कुनलि मैं अंताज नि आयो मोहनियां
उ कसि स्यैंणि हुनेलि, हा……