सिनेमा: कैमरा:
फिल्मांकन का मूल आधार टाॅलमी के ‘आंखों की दृश्य बिंब ग्रहण
करने की शक्ति’ के सिद्धांत में निहित माना जाता है। मूवी कैमरा
बनाने की प्रेरणा 1877 में सेन फ्रांसिस्को के एक अंग्रेज फोटोग्राफर
वियर्ड माइब्रिज के भागते हुए घोड़ों के चित्रांकन से उद्भूत हुई थी।
अमेरिकन आविष्कारक टाॅमस एडीसन ने अपने अभिनव वैज्ञानिक यंत्र
‘किनेमेटोस्कोप’।1896। द्वारा पचास फुट लंबी फिल्म का प्रदर्शन कर
अमेरिका के अतिरिक्त फ्रांस और जर्मनी के लोगों को विशेष रूप से
प्रभावित किया।
भारत में फिल्म प्रदर्शन भी इसी वर्ष ।1896। फ्रांस के ल्यूमिए बन्धुओं
द्वारा किया गया, जिनकी फिल्म की विषय वस्तु एक साधारण सी घटना
– मजदूरों का कारखाने से लौटना – थी। सिनेमा की आख्यात्मक संरचना
बीसवीं शताब्दी की शुरुआत के साथ अस्तित्व में आई।
सिनेमाई भाषा व्याकरण की प्रारंभिक रूपरेखा विभिन्न फिल्मकारों ने कैमरे
के संचालन एवं फिल्म के संपादन के बहुविध प्रयोगों से की, जिसका श्रेय
सबसे पहले अमेरिका के निर्माता निर्देशक डी. डब्ल्यू. ग्रिफिथ को प्रदान
किया जाता है। वह समझ गए थे कि जैसे कहानी के कथानक को शब्दों के
शिल्प से निखारा जा सकता है, वैसे ही फिल्म के कथानक को शाॅट्स और
दृश्यों के सुनिश्चित क्रम से संवारा जा सकता है।
विषय वस्तु के अनुसार कैमरे के कोण को बदलकर ‘क्लोजअप’,‘मिडिल शाॅट’,
‘लौंग शाॅट’ द्वारा दृश्यों की विशेषताओं अथवा पात्रों की भंगिमाओं का बेहतर
फिल्मांकन किया जा सकता है। ग्रिफिथ ने कैमरे के कोणों को परिवर्तित करने
के लिए उसे ट्राली की सहायता से आगे पीछे चलाना प्रारंभ किया।