गजल: दिल :
गम का मौसम अरमानों का पतझड़ है
दिल जैसे आँधी में उड़ता कंकड़ है
कह सकते हैं ओठ कान सुन सकते हैं
दिल न कहे ना सुने मामला गड़बड़ है
लिख सकते हैं हाथ नयन पढ़ सकते हैं
दिल न पढ़े ना लिखे बिचारा अनपढ़ है
चख सकती है जीभ दाँत खा सकते हैं
दिल न चखे ना खाए जि़्न्दगी पापड़ है