लोकगीत : तर्क प्रधान :
ये गीत सुर-लय में वाद-विवाद युक्त होने के कारण तर्क प्रधान
कहलाते हैं। लोक गायन की यह प्रतिद्वंद्विता पूर्ण षैली ‘बैर’
नाम से जानी जाती है। बैर अर्थात् संघर्ष, जो गीत युद्ध के रूप
में गायकों के बीच होता है। बैर गायक को बैरिया कहते हैं, जो
प्रष्न करते हुए या उत्तर देते हुए अपने विपक्षी को मात देना
चाहता है, अतः प्रसंग के अनुसार अत्यंत कुषलता पूर्वक तालमेल
बैठाते हुए अपने तर्क प्रस्तुत करता है। इसमें व्यंग्य का पुट विषेष
विनोद उत्पन्न करता है।
बैर गीतों का मूल कुमाऊं की विषेष परिस्थितियों में खोजा जा
सकता है। यह पर्वतीय भूमि कठिन भूमि है, जहां प्रतिक्षण
मनुष्य का प्रकृति के साथ संघर्ष होता है। जीवन यापन के लिए
मनुष्य को अपने वातावरण के साथ कठोर परिश्रम करना पड़ता है।
इसी का जो प्रतिबिंब उसके दैनिक कार्यों व संगीत में उभरता है,
वही बैर है। इसमें किसी वाद्य का प्रयोग नहीं होता। प्रतिद्वंद्वी
गायकों का स्वर ही इसका एकमात्र आधार होता है।