लोकगाथा: गंगू रमोला: 16
हिन्दी रूपान्तर:
नहला-धुला कर गुरु ने (उन्हें) झोली में रखा।
रात में ही उठ कर चल पड़े गुरु दूध-भिक्षा माँगने।
अलख जगाई। (और दूध की) भिक्षा माँगी।
छाती के दूध की भिक्षा माँगी गुरु ने।
गुरु (की देख रेख) एक दिन बीता,
दूसरा, तीसरा और चौथा;
आठ, दस और ग्यारहवें दिन
गुरु ने नामकरण किया।
गुरु ने नाम दिया –
”सिदुवा और बिदुवा।“
गुरु की देख रेख में
पाँच साल बीते।
गुरु नीलपाल ने विद्यारम्भ किया।
बारह विद्यायें, बोकसाड़ी जन्त्र,
मन्त्र पढ़ाये गुरु ने, आया उत्तरायणी पर्व।
गुरु चल पड़े उत्तरायणी स्नान को। क्रमशः