लोकगीत : विरह :
न्योली की दो पंक्तियां मिलकर अनुभूति की
गहराई छू लेती हैं। गाते समय न्योली की दूसरी
पंक्ति के अंतिम चरण को तीसरी पंक्ति के रूप में
‘न्योली’ से जोड़कर दोहराया जाता है। ‘न्योली’
गीत बिना किसी वाद्य के गाए जाते हैं। इन गीतों
का प्रमुख आकर्षण इनका स्वर विस्तार है।
न्योली संयोग श्रंगार की अपेक्षा वियोग श्रंगार से
अधिक अनुप्राणित रहती है। इसमें विरह के स्वर
तथा आलापों के खिंचाव कथ्य को अधिक करुण
बना देते हैं; जैसे-
सुर-सुर बयाल पड़ो क्यालूं का गाबा में
के हुंछ फिकर करि जे होलो भागा में
जे होलो भागा में न्योली जे होलो भागा में