सिनेमा: अंतर:
फिल्में अपने दर्शकों को कुछ समय के लिए निजी कुण्ठाओं
अथवा हीन भावनाओं से मुक्ति एवं मनोरंजन प्रदान करती
हैं ; इसलिए भी हिंदी फिल्म निर्माता अपनी फिल्मों में त्रासदी
तत्व से परहेज करते हैं और दैनंदिन जीवन में व्याप्त असुरक्षा
एवं अशांति के बावजूद अपने दर्शकों को तीन घण्टे के लिए
समस्वरता तथा सामंजस्य के माहौल में आराम से बिठाना
चाहते हैं।
फिल्म – नाटक या एकांकी की तरह – दृश्यकाव्य का ही एक
तकनीकी दृष्टि से विकसित स्वरूप हैं। इसमें और अन्य रंगमंचीय
विधाओं में साधनों के प्रयोग की दृष्टि से भिन्नता होते हुए भी
प्रभाव और उद्देश्य की दृष्टि से अधिक अंतर प्रतीत नहीं होता।
यही बात दूरदर्शन पर विभिन्न चैनलों के माध्यम से दिखाए जाने
वाले धारावाहिकों पर भी लागू होती है। मनोरंजन की दृष्टि से
आकाशवाणी के कार्यक्रमों को भी अधिकाधिक रोचक एवं प्रभविष्णु
बनाए जाने के प्रयास जारी हैं। इन प्रयासों में फिल्मी गीतों के
अलावा फिल्मोद्योग से संबंधित खास हस्तियों के साक्षात्कारों का
भी आश्रय लिया जाता रहा है।
नाटक, धारावाहिक और फिल्म में अंतर के संबंध में वरित्र अभिनेता
अवतार गिल का मानना है कि ‘ तीनों माध्यम एकदम अलग हैं।
नाटक पूरी तरह अभिनेता का माध्यम है। इसमें अभिनेता को संपूर्ण
रूप से अभिव्यक्ति का मौका मिलता है। धारावाहिक लेखक का
माध्यम है, जिसमें निर्देशक और अभिनेता के लिए ज्यादा मौके नहीं
होते। सिनेमा निर्देशक का माध्यम है। निर्देशक जैसा चाहता है, फिल्म
को वैसी ही पेश कर सकता है।