कविता: रास्ता :
बचपन में
जिस रास्ते को हम
बहुत लंबा समझते थे
जवानी में
हमने उसे
बाएं हाथ का खेल
साबित कर दिया
और बुढ़ापे में
उसे हमने
कई हिस्सों में
बांट लिया है
जिस पर धीरे धीरे
हांफते हुए चलते हैं
जब कि
रास्ते की लंबाई
हमेषा वही
रही है
जो बचपन में
अकल्पित थी
जवानी में नगण्य रही
बुढ़ापे में अत्यधिक
लगती है