लोककथा: रोटी गिण गिण :
हिंदी अनुवाद:
ब्राह्मण आसन लगा कर बैठा, ओठों में कुछ बुदबुदाया और बोल
उठाः बता ओ नारी, आठ रोटियाँ, सोलह बार तवे में डालने और
पलटने की आवाज, चार रोटिया यहाँ हैं, बता दे कहाँ हैं बाकी
चार रोटियाँ। ”बता ओ नारी, ला रख दे उन्हें देवता के सामने।“
ब्राह्मणी तो मारे भय के कांपने लगी, बोलीःः क्षमा कीजिए हे
इष्टदेव। हम मनुष्य ही ठहरे, पूर्णता तो सम्भव है नहीं। गलती
हो ही जाती है मनुष्य से। आप सत्य है। दूध का दूध, पानी का
पानी करने वाले न्यायी हैं आप हे प्रभु। नित्य ही मैं आधी रोटियाँ
चौके के नीचे छिपा दिया करती हूँ।“ यह कहते-कहते ब्राह्मणी आठों
रोटियाँ निकाल लाई और ब्राह्मण के सामने रख दी सब रोटियाँ।
कुछ देर और कांपने के बाद ब्राह्मण तो पांव लम्बे पसार कर बैठ
गया जैसे उसके षरीर पर उतरा हुआ देवता अब जा चुका हो। उस
दिन ब्राह्मण के हिस्से में भी चार रोटियाँ आईं। भोजन करते समय
ब्राह्मण अपनी पत्नी से कहने लगा ”देख कल से यह बात बिखेरती
न फिरना कि हमारे पति पर ऐसा देवता उतर आया था। षरीर पर
देवता का आवेष कभी आ गया, कभी नहीं आया, कुछ निष्चित नहीं।“
ब्राह्मण ने तो कह दिया किन्तु स्त्री के पेट में बात कहां रह पाती है।
रात भर ब्राह्मणी व्याकुल रही कि कब भोर हो और कब मैं अन्य स्त्रियों
को यह सब बताऊँ। पौ फटते ही ब्राह्मणी कलसा लिये नौले (जलाषय)
की ओर चल दी। दो एक सहेलियाँ भी उसे मिल ही गई वहाँ। ब्राह्मणी
कहने लगी ”हमारे पति के षरीर पर तो, जी, साक्षात् देवता उतरता है।
बीती हुई बात बता देता है, भावी भी स्पष्ट कह देता है, और तो और
चूल्हे की रोटियाँ तक गिन कर ठीक-ठीक बता डालता है।“ औरतों की
वाक्-षक्ति। षाम होते न होते सारे गाँव में ब्राह्मण के षरीर पर आने
वाले देवता की ख्याति फैल गई। न केवल गाँव में, आस-पास के इलाकों
में भी बात फैलने लगी। क्रमषः