उत्तराखण्ड : इतिहास:
लगभग 200 वर्षों (850-1050 ई0) तक कुमाऊं में कत्यूरी
वंष के राजाओं का षासन रहा। किन्तु इन दो सौ वर्षों में
स्थानीय राजाओं तथा कत्यूरी राजाओं के बीच निरंतर संघर्ष
रहने से षासन में स्थिरता न आ सकी। कत्यूरी राज्य के
पराभव के उपरांत चंद राजाओं के षासन काल में कुमाऊं को
एक षक्तिषाली राज्य के रूप में विकसित होने के अवसर मिले।
चंद राजाओं में गरुड़ ज्ञानचंद, उद्यानचंद, विक्रमचंद, भारतीचंद,
रतनचंद, माणिकचंद, रुद्रचंद के नाम उल्लेखनीय हैं।
राजा रुद्रचंद (1565-97 ई0) के बाद चंद राज्य की षक्ति क्षीण
होने लगी। राजा लक्ष्मीचंद और उद्योतचंद के षासन काल में
रोहिला आक्रमण ने चंद राज्य को और भी बलहीन बना दिया।
1790 में गोरखा आक्रमण के साथ ही चंद राज्य का पतन तथा
गोरखा राज्य का आरंभ हुआ। 1790-1815 तक कुमाऊं में गोरखों
का राज्य रहा। 1815 में गोरखा तथा अंग्रेजों के बीच सिंगौली की
संधि के परिणाम स्वरूप कुमाऊं ब्रिटिष भारत का अंग बना।
कुमूं नाम अति प्राचीन है। यह सोलहवीं सदी ईस्वी तक चंपावत
तथा उसके निकट के भूक्षेत्र का नाम था। अकबर के समय में मुगल
साम्राज्य का सरकार-सूबा-कुमायूं सरकार-सूबा-बदायूं से मिला हुआ
पूर्वाेत्तर सूबा था। उसमें वर्तमान कुमायूं का तराई-भाबर क्षेत्र, बिजनौर
-मुरादाबाद जिलों का नजीबाबाद-संभल तक का उत्तर-पूर्व क्षेत्र तथा
कांठ व गोला गोकर्णनाथ तक का पहाड़ों से मिला भूभाग था। वर्तमान
अल्मोड़ा, कत्यूर, धनियाकोट, फल्दाकोट तथा उत्तर में अस्कोट,
सोर और सीरा सन् 1563 ई0 तक कुमायूं या कुमाऊं के अंतर्गत नहीं थे।