सिनेमा: मास्टर प्लाॅट्स:
हिंदी सिनेमा को प्रभावित करने वाली परंपरागत प्रदर्शनकारी
विधाओं की विषयवस्तु प्रायः पौराणिक अथवा लोकगाथाओं
पर आधारित थी, जिन्हें मिथकीय महाकाव्यों की संज्ञा प्रदान
करते हुए पटकथाकार/शायर जावेद अख्तर का मानना है कि –
‘उन्होंने लगभग दस मास्टर प्लाॅट्स को जन्म दिया, जो
किसी खास जज्बे की पूरी नाटकीयता के साथ नुमाइंदगी करते
हैं; जैसे – प्रेम, नफरत, ईष्र्या, जिज्ञासा इत्यादि। पुनः इन
मास्टर प्लाॅट्स को सदियों से इतना अधिक परिमार्जित किया
जा चुका है कि सुधार की कोई गुंजाइश नहीं रह गई है।’
‘सचमुच मिथकीय महाकाव्यों पर आधारित मास्टर प्लाॅट्स ने
ही हिंदी सिनेमा को उसका विशिष्ट फाॅर्मूला प्रदान किया है।
आज भी निर्माता इनके साथ किसी किस्म की छेड़खानी नहीं
करना चाहते, क्योंकि वे लोक मानस में गहराई से अंकित हैं।
कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि मास्टर प्लाॅट्स की
उपस्थिति हिंदी सिनेमा को उसके भूत और वर्तमान से जोड़ती है।’
इसका मतलब यह भी नहीं है कि हिंदी फिल्मों ने त्रासदी को पूरी
तरह से नकार दिया या कोई मौलिक फाॅर्मूला ईजाद नहीं किया।
फिल्म के कई क्षेत्रों में कार्यरत अनेक प्रतिभाएं समय समय पर
व्यावसायिक मर्यादाओं में रहते हुए भी अपनी मौलिकता को पेश
करने का जोखिम उठाती रही हैं, तथापि हिंदी में त्रासदी फिल्मों
की संख्या नगण्य है। इसका प्रमुख कारण यह माना जाता है कि
हिंदी दर्शकों के लिए फिल्म देखना ‘सामूहिक फंतासी में जीने’ या
‘स्वप्न देखने’ के समान है।