गजल: भाई:
खुष्क रोटी है दाल है भाई
अब यही हालचाल है भाई
गांव षहरों की तरफ टूट पड़े
जिंदगी का सवाल है भाई
पेड़ कम हो गए तो लकड़ी की
कीमतों में उछाल है भाई
लालची हो गया दिल ए नादां
सभ्यता का कमाल है भाई
गजल: भाई:
खुष्क रोटी है दाल है भाई
अब यही हालचाल है भाई
गांव षहरों की तरफ टूट पड़े
जिंदगी का सवाल है भाई
पेड़ कम हो गए तो लकड़ी की
कीमतों में उछाल है भाई
लालची हो गया दिल ए नादां
सभ्यता का कमाल है भाई