लोककथा: रोटी गिण गिण:
हिंदी अनुवाद:
एक निर्धन ब्राह्मण था। गाँव में दस पाँच परिवार उसके
यजमान थे। उन घरों से जो भी दक्षिणा आदि मिलती उससे
ही ब्राह्मण के परिवार की गुजर बसर होती थी। परिवार भी
उसका छोटी ही था। दो प्राणी के घर में स्वयं ब्राह्मण और
उसकी पत्नी। ब्राह्मण खुद तो सीधा-साधा था किन्तु ब्राह्मणी
बड़ी चतुर थी।
षाम को भोजन बना चुकने पर जब ब्राह्मणी अपने पति को
बुलाती थी तो प्रतिदिन चूल्हे में चार ही रोटियाँ रखी दिखतीं।
आष्चर्य की बात तो यह थी कि चाहे ब्राह्मण चार घरों से दक्षिणा
में आटा लावे तो चार ही रोटियाँ बनती थी उस आटे की, और
चाहे दो ही घरों में से दक्षिणा लावे तो वही चार रोटियाँ बनती थीं।
ब्राह्मण की भी समझ में नहीं आता था कि दक्षिणा में वह चाहे
कितना ही अनाज लावे, प्रतिदिन यह चार ही रोटियाँ क्यों कर
दिखाई देती हैं।
एक दिन साँझ को ब्राह्मण अपनी पत्नी से कहने लगाः ”मैं जरा
दूसरे गाँव तक जा रहा हूँ अपने यजमानों के घर। मेरे लौटते समय
तक तुम भोजन बना कर तैयार रखना।“ यह कहकर ब्राह्मण तो
अपनी पोथी-पत्री समेट घर से चल दिया। कहीं जाना तो था नहीं
उसने। नीचे नदी के किनारे, पनचक्की के आस-पास घूमघाम कर
ब्राह्मण तो अंधेरा होने के उपरान्त घर की ओर मुड़ गया और दबे
पांवों अपने घर की छत पर चढ़कर एक कोने में दुबक रहा।
चूल्हे की ओर कान लगाये सुन रहा था वह ब्राह्मण। उसने सुना कि
आठ बार रोटी पकाने की फटफटाहट सुनाई दी और सोलह बार उन्हें
तवे में डालने और पलटने की आवाज सुनाई पड़ी। जब अंधेरा और
घना हो गया तो ब्राह्मण छत से उतर कर नीचे चला आया। भीतर
आकर ब्राह्मण ने अपनी पत्नी से तो कुछ न कहा। हाथ-पाँव धो कर,
धुली हुई धोती पहिन ब्राह्मण आसन बाँध कर देव-मन्दिर में बैठ गया।
देवताओं को धूप दीप समर्पित कर अपनी पत्नी से बोलाः ”सुनो तो,आज
मेरे षरीर में कंपन हो रही है.कुछ अक्षत लाकर यहाँ पर रख तो दो।
ब्राह्मणी ने वैसा ही किया। क्रमषः