लोकगाथा: गंगू रमोला: 14
हिन्दी रूपान्तर:
बुड्ढे गंगू रमोला की दषा अजीब हो गई।
इजुला से बोला-कल का कलेवा बिजुला (ही) लायेगी।
रानी इजुला चली गई रमोली गढ़।
कनिष्ठा रानी बिजुला से बोली-
स्वामी का आदेष तुमहारे लिए यह है-
कलेऊ दे जाना, दर्षन भी दिखाना।
कनिष्ठा बिजुला ढुल-ढुल रोने लगी।
रोते-रोते बिजुला को अर्द्ध रात्रि हो गई।
अर्द्ध रात्रि में, उसमें निद्रा ढल गई।
”आज की रात चली जाती हूँ कुंजानी पातल।
रस्सी से, गर्दन फन्दा देकर कत्ल हो जाती हूँ।“
दिगौ, द्वारिका में कृष्ण को स्वप्न हो गया।
रानी उठी कुंजानी पातल को चल पड़ी।
अर्द्ध रात्रि में उसे प्रसव व्यथा शुरु हो गयी।
सूर्य उग रहा था। रात ढल रही थी।
कुंजानी की झाड़ी में दो बच्चे गिरे। क्रमशः