भाषा: शब्द सम्पदा:
मानव जीवन अन्तर्मन की सूक्ष्म संवेदनाओं से लेकर प्रकृति
के उदार प्रांगण तक विस्तृत है, जिसके अन्तर्गत एक ओर
समस्त लोकाचार समाहित है तो दूसरी और सम्पूर्ण पर्यावरण
सम्मिलित है। इस परिधि में प्रयुक्त होने वाली बोलियों में सभी
मनस्थितियों एवं परिस्थितियों को प्रकट करने के लिए निजी
भाषिक सम्पदा होती है। अतः मानव का सारा चिन्तन और कर्म
उसकी शब्दावली में व्यक्त हो जाता है।
यहाँ पर यह भी स्मरणीय है कि बोली केवल वाक्संचार का माध्यम
ही नहीं, वरन् वक्ता की संस्कृति की संवाहिका भी होती है। जिसके
संकेत शब्दों में ही अभिव्यक्त होते हैं। शब्दों के बिना न तो व्यक्तियों
के पारस्परिक सम्बन्धों को जाना जा सकता है, न ही समाज के आपसी
सम्बन्धों को पहचाना जा सकता है।
शब्द ही वह समर्थ माध्यम हैं, जिनके द्वारा भौतिक पदार्थों अथवा
अमूर्त भावों का बोध होता है और इसी के द्वारा सांस्कृतिक धरोहर
पीढ़ी-दर-पीढ़ी अग्रसर होकर स्थायित्व प्राप्त करती है। यही कारण है
कि किसी मानव समुदाय के सांस्कृतिक-ऐतिहासिक अध्ययन के लिए
उसकी बोली ही विश्वसनीय आधार मानी जाती है।