लोकगीत : तुकांत :
दूसरे प्रकार के भगनौल जोड़ों से तो
बंधे होते ही हैं, इसके अतिरिक्त प्रत्येक
पंक्ति का अंतिम शब्द तुकांत रहता है।
बीच की पंक्तियां इच्छानुसार गद्य जैसी
पढ़ दी जाती हैं; जैसे-
द्वी माणियां तौली के है रै छै भोली
द्वी मजला घर मेरो छाजा में भै रौली
औनी गंगा नाई लीये ऊनै जै के रौली
एक म्यारा घर छ दोहरि तू नौली
बुडि़या म्यारा मेरि नौली ब्वारी कौली
बगसै की ताई कुच्ची त्यारै हाथै रौली