गजल : है ना :
दर्द दो रोज का वहम है ना
वक्त हर जख्म का मल्हम है ना
सांस लेते हुए कभी न थके
जब से पैदा हुए हैं हम है ना
पेड़ कटने का जिक्र होते ही
आंख होने लगी है नम है ना
आदमी और जानवर में भी
फासले हो गए हैं कम है ना
गजल : है ना :
दर्द दो रोज का वहम है ना
वक्त हर जख्म का मल्हम है ना
सांस लेते हुए कभी न थके
जब से पैदा हुए हैं हम है ना
पेड़ कटने का जिक्र होते ही
आंख होने लगी है नम है ना
आदमी और जानवर में भी
फासले हो गए हैं कम है ना