लोककथा: रोटी गिण गिण
हुणि होतव येसि भई कि एक राजै कि चेलिक हार हरै गे। जब
भौत ढून खोज पर लै कै पत्त नि चलो त कैलै राज कै बतयो
कि फलाण फलाण गौं में एक पुछ्यार बामण रुंछ। विथैं पूछ
करवईनी त जरुर के पत्त चलि जान। राजैल उबखतै आपण सिपाहि
बामण कैं बोलूंण हुं भेजि दि। बामणैल जब राजाक सिपाहि अई देखा
त उसिकै कामण लागो। जवाब सुणि बेर त वीक गलक थूक गलनैं
सुकि गे। भितेर ऐ बेर बामणि थैं कैः ‘‘आब तु उताण पकयै,
टोटिल खयै। त्यारै करम पिणाणई। कैकै बल्द हराण, कैकै घोड़ो
हराण त उननकें त चांण हुं फुकीणी। आब राजा का हार कैं मैं कां
ढुनुं। मैं यो जांणयुं, बचि बेर ए गई त ठीकै भै, नन्तर यो नान
तिन मुल्यइयोक पाप त्यारा ख्वारन रौल।
राजाक सिपाइनैंल बामण कैं लिजै वेर राजक मुखथैं ठाड़ो करि दि।
राजैलै कैः ‘‘हमर हार हरै रौछ। भोल रत्ते तक वीक सांचि सांचि
पत्त बतै देलै त तुकैं जागीर द्यॅंॅूल, और निं बतयोत भौलै हुं तुकैं
फांसि मिललि।’’ राजा कै महल में बामण कैं रुण हुं जागा मिलि गे।
भैर बटिक राजैल पहरुवा बैठै दि। रात भरि बामण कैं नीन कि आलि।
पेटक्वीड़ लागि गे कि मैंकैं मौत लै भलि निं मिलिं। बामणाक कल्ज
पन वैर जासा पड़नेर भै राजा का हुकम कैं याद करि करि बेर। आखिर
बामण कूण लागोः ‘‘आ, निनुरी, आ सिनुरी, भोल तेरि मौत, आ
निनुुरी आ सिनुरी।’’
रजैकि द्वि नौकर्यांणि लै भैन निनुरि सिनुरी नामै कि। हार लै उनलै
चोरि राखिछी। उं सकपकै बेर रात भरि बामणाक भितेराक दरवाज
पर कान लगै बेर सुणी भैन। जब उनैंल सुण कि बामण लै उनरै नाम
लिहणौंछ त उं डाड़ मारनीं बामणाक खुटन पड़ि गैंन कि हार हमलैं चोरि
राखौछ। यो छु हार। तुम हमरि जान बचै दियो। हमर नाम झन सांकिया
राज थैं। बामणैल हार उनन थैं ल्हि बेर घड़ाका ताला लुकै दि। क्रमषः