लोकगाथा: गंगू रमोला: 12
हिन्दी रूपान्तर:
”तुम हमारे द्वार पर ही भोजन करो।“
नवौली के पाठ में रसोई बनाई।
नहा धोकर गंगू रसोई के लिए तैयार हुआ।
तीन चूल (आचमनि) मारकर, होर (भस्म रेखा) के भीतर गया।
भगवान के कोप से भात के कीड़े बन गये और साग का रक्त।
क्या दषा बिगड़ी (गंगू) धरम धात मारने लगा।
(यह) किसका दोष लग गया। किसका बिगाड़ (लग गया)?
रुक्मिणी बोली इस व्यथा का हल-
मेरे पति कृष्ण दीनों के बंधु हैं।
तुम (उनके) पास जाओ, क्षमा मांग लो।
(तब) छोटी रानी बिजुला गई कृष्ण के पास।
क्षमा कर दो भगवान (गंगू) विपत्ति में फँसा है।
रमोली गढ़ सूना हो गया है।
भिखारी हो गये हैं भगवान! न खाने को न पीने को।
कृष्ण जी दयालु (थे), (उन्होंने) दो मुट्ठी कौंणी के दिये।
बूढ़ा गंगू रमोला पैरों पर गिर पड़ा। क्रमशः टी