लोकगीत : आकार :
सच तो यह है कि ‘भगनौल’ का कोई पूर्व-निश्चित
आकार वा स्वरूप नहीं होता।
गायक अपनी सूझ-बूझ, स्मरण शक्ति तथा वाक्-चातुरी
द्वारा उसे एक निश्चित रूप देता है।
भगनौल के तीन प्रकार उपलब्ध होते हैं –
पहले प्रकार के भगनौल में प्रथम दो पंक्तियां गीत की
टेक बन जाती हैं और जोड़ कहे जाने के बाद उनकी
पुनरावृत्ति की जाती है; जैसे-
जागेश्वर धुरा बुरूंशि फुलि गे
मैं केहूं टिपूं फूला मेरि हंसा रिसै रे
ओ……ह्वै लाया काकड़ी मुखड़ी खिसै रे
मडुवा हरियाली लागी पिरीता भुली गे
ओ…. पिरीता भुली गे…………
जागेश्वर धुरा……………………..