चौरासी माल :

chaurasiउत्तराखंड : चौरासी माल:

चौरासी माल की सीमा पूर्व में पूरनपुर जिला पीलीभीत की षारदा नदी
तक तथा पष्चिम में पीला नदी के पास रावपुर (जसपुर एवं रामगंगा के
बीच) के निकट तक थी। इसके उत्तर में भाबर की उखड़ भूमि तथा दक्षिण
में मैदानी भागों की (विषेषकर कठेड़ की) थी। कूर्मांचल नरेष रुद्रचंद देव
(1567-1597 ई0) के काल में निम्नलिखित खण्ड चौरासी माल में सम्मिलित
थे –
1 – सहजगीर (जसपुर का पुराना नाम)
2 – कोटा (वर्तमान काषीपुर)
3 – मुंडिया (वर्तमान बाजपुर)
4 – गदरपुर
5 – बोक्सार (रुद्रपुर, किदमपुरी)
6 – बख्षी (नानकमत्ता) तथा
7 – चिन्की (बिल्हरी, सरबना)

इस तरह हिमालय के प्राकृतिक स्वरूप के निर्माण में बर्फ और नदियों के
अलावा चट्टानों और जंगलों की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। एक ओर जहां
बर्फ ने ऊंचाइयों में चैरस मैदान बना दिए हैं, वहीं दूसरी ओर उससे निकली
नदियों ने पर्वत प्रदेष को आड़े-तिरछे विभाजित कर दिया है। गाय- भैंसों के
लिए बुग्यालों की घास तथा भेड़- बकरियों के लिए चट्टानों में पैदा होने वाली
वनस्पति के अतिरिक्त जंगल पषुपालन के लिए पर्याप्त सामग्री प्रदान करते हैं।

कृषि के लिए उपयुक्त घाटियांे का भी यहां अभाव नहीं रहा, पर उपजाऊ
घाटियों में जनसंख्या बढ़ने के कारण खेती के साथ-साथ गुजर-बसर के लिए
पूरक व्यवसायों की तलाष का जुनून वक्त के हिसाब से बदलता रहा है। इस
बदलाव में तमाम लोगों को अपने घर से बहुत दूर जाकर काम करना पड़ता
है,जिनमें से कुछ तो घर लौटते हैं और कुछ वहीं के होकर रह जाते हैं।

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Published by

Dr. Harishchandra Pathak

Retired Hindi Professor / Researcher / Author / Writer / Lyricist

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