सिनेमा: स्वांग:
स्वांग की उत्पत्ति पंजाब में हुई ; यहां की स्वांग नाटिकाओं में पूरन
भगत, राजा नल, गुरु गग्गा, अमर सिंह, हीर रांझा, हरिश्चंद्र अत्यधिक
प्रसिद्ध थीं। ऐसा माना जाता है कि कालांतर में यह शैली दिल्ली, मेरठ,
हाथरस से होती हुई कानपुर पहुंची ; जहां तक पहुंचते पहुंचते उसमें खड़ी
बोली तथा बंजभाषा के अलावा उर्दू के शब्दों का प्रयोग होने लगा था।
देवनागरी लिपि में मुद्रण प्रारंभ होने के बाद उत्तर भारत में स्वांग को
लिपिबद्ध कर नाटिकाओं के रूप में प्रकाशित किया गया , जिनमें प्रह्लाद,
गोपीचंद, भर्तहरी, राजा हरिश्चंद्र, राजा कड़क, रानी नौटंकी उल्लेखनीय हैं।
स्वांग नाटिकाओं में स्त्री पात्रों की भूमिका पुरुष ही निभाते थे, अतः इनके
प्रदर्शन को अभिजन समाज हेय दृष्टि से देखता था। उनका मानना था कि
स्वांगों की भाषा भी मानक नहीं होती, पर हिंदी सिनेमा पर इनके प्रभाव
को अस्वीकार नहीं किया जा सकता।
इन्हीं से प्रभावित होकर दादा साहब फाल्के द्वारा 1913 में राजा हरिश्चंद्र,
प्रियनाथ गांगुली द्वारा 1931 में प्रह्लाद, देवकी बोस द्वारा 1932 में पूरन
भगत, जे. पी. अडवाणी द्वारा 1932 में हीर रांझा, ए. आर. कारदार द्वारा
भी 1932 में ही हीर रांझा, माणिक भाई व्यास द्वारा 1965 में गोपीचंद और
चेतन आनंद द्वारा 1970 में हीर रांझा के अतिरिक्त अन्य अनेक निर्माता
निर्देशकों द्वारा बहुत सी सफल फिल्मों का निर्माण किया गया।