लोककथा: रोटी गिण गिण :
एक दिन एक धोबि पुज बामणिक पास। बुलाणः ‘‘म्योर त हो
बल्द हरै गौ। मिलण निं लागि रै पंडितज्यूक नाम सुणि बेर आयुं
जरा आपुं पूछ करवै दियोत।’’ बामणिल उथैं त कै पूछ करण हुं
दुसोर दिन रत्तै उंण होल विकै। व्याल हुं वील बामण थैं कै।
बामण बिगड़ि गे कि त्वील यो म्यार खोरि हात लगवै हाली। त्वीलै
यो बात पुजै हुनेलि चार खूंट। उन द्वींन में जै लड़ैं हुण लागि। बिन
खइयै बामण बाट लाग बल्द चाण हुं। ढुनते ढुनते विकै बल्द मिल
रिक्खु क खेत में रिक्खु खाते। भली कै रात हई बै बामण घर लौट।
दुहार दिन रत्तैई धोबि पूछ करुण हुं ऐगे। बामण लै आपण टिक
चनण करि बेर दुलैंच में बैठ। आंग बरकै, दांणि वलटैन, और बोलाणः
‘‘आठ रोटी सोल छं्या, जा तेर बल्द रिख्वांणि में मिलि जाल।’’
धोबि लाग बल्द चांण बाट। बल्दैल रिख्वांणि में मिलणै छि।
कुछ दिनन बाद एक घोड़ वालो आपण हरई घोड़ै कि पूछ करुण हुं ऐ
पुज। विथैं लै बामणैंल दुहारा दिन रत्तै उण हुं कै और आपुं बाट लाग
घोड़ कै ढुनण सारि रात भरि चानै चानै घोड़ोक के पत्त पांणि निं मिल।
रातव्यांण करै घर लौटण बखत बामणैल एक घोड़ो द्योख। हो न हो योई
हुल्योल उ हरई घोड़ांे-बामणैल सोचो, और उकै हकै बेर एक बगिचै कि
दुब में चरण छोड़ि ऐ। बामणाक घर लौटण तक त भलि कै उज्याल हैगे।
बामण नै ध्वे बेर आपण पुज पाठ में भै रौछि कि घोड़ो वालो ले ऐ पुज।
बामण फिरि, मणि झुम झाम और डूक छोड़िः ‘आठ रोटी सोल छ्यां,
बल्द हरांणो रिख्वांणि पायो। जा हो जा, त्योरो घोड़ो दुव्यांणि में चरणौंछ,
जा लि आ।’’ घोड़ो लै मिलि गौ। क्रमषः