लोकगाथा: गंगू रमोला: 11
हिन्दी रूपान्तर:
जेठी रानी इजुला थी, छोटी बिजुला।
कन्दमूल खाकर प्राण पालने लगीं।
रमोली के सेरे में ऐरे के काँटे जम गये।
बिच्छू झड़बेरी (घासें) जम गई रमोली में।
छोटी बिजुला बोली-देष छोड़कर कहीं और चले जाते हैं।
राज सृजन निज देष में, भीख पराये देष।
घर बार छोड़कर गंगू, उत्तर (हिमालय) के देष (तिब्बत) को चले गया।
अनवाला डमरु बजाकर भिक्षा मांगने लगा,
जौ की रोटी और सिसुण (बिच्छू) घास का साक।
उत्तर से दक्षिण गया और पूरब से पष्चिम।
माँगते-माँगते पहुँचा कृष्ण जी की द्वारिका।
(गंगू ने) कृष्ण जी के दरबार में डमरु बजाया।
पूर्व के झरौखे में रुक्मिणी बैठी हुईं थीं। (रुक्मिणी बोली)
हु़ड़किये के वेष में, ”किसी बड़े घर का (आदमी) लगता है।“
कच्चे अन्न की भीख देने के लिए दरवाजे पर आईं।
तीन दिन के भूखे (रमोले) ने भूख पुकारी। क्रमशः