लोकगीत : अनुभूति प्रधान :
कुमाऊँ के अनुभूति प्रधान लोकगीत प्राय: प्रेमानुभूति की
गहनता वाले होते है, जिनमें भाव सौष्ठव को विशेष महत्व
प्रदान किया जाता है। इनमें नृत्य आवश्यक नहीं माना जाता,
पर गायन के बीच-बीच में भावों के अनुरूप अंग संचालन हो
ही जाता है, जो नृत्य की भांति निश्चित तालबद्ध नहीं होता।
आलाप और टेक की आवृत्ति समान रूप से चलती है। इनके
दो प्रमुख भेद माने जाते हैं – भगनौल एवं न्योली।
भगनौल
भगनौल में एक दूसरे से असंबद्ध पद्यात्मक उक्तियों को,
गायक स्वर के आरोह-अवरोह के साथ-साथ मुख्य उक्ति
के साथ इस भांति जोड़ देता है कि सारा गीत सार्थक हो
उठता है। इनमें प्रयुक्त होने वाली उक्तियां सभी लोकगायकों
की सामान्य विरासत कही जा सकती हैं।
गायक की कुशलता इन उक्तियों को एक दूसरे से जोड़ने में
है। इन उक्तियों को ‘जोड़’ कहा जाता है। इनमें दूसरी पंक्ति
बहुधा प्रथम पंक्ति को सार्थक बना देती है; जैसे-
ढोलकी कसणा
सबै चीज भुली जूंलो नि भुलूं हंसणा