सिनेमा: अंतर्सम्बन्ध:
नाटक की संरचना में पांच संधियों का मेल होता है – मुख संधि
/कहानी का बीजारोपण, प्रतिमुख संधि/नायक के प्रयास, गर्भ संधि
/आशा और निराशा का मिला जुला चरण, विमर्श संधि/परिस्थितियों
का अनुकूल होना तथा निर्वाह संधि/सकारात्मक फलागम। यूनानी नाटकों
में ट्रेजेडी व काॅमेडी को सदा पृथक रखा गया, जब कि भारतीय नाटकों
में रंगमंच को त्रासद अंत से बचाए रखने का प्रयास होता रहा। विभिन्न
प्रकार के अवरोधों से बचता हुआ नायक कथाधारा को सुखांत की ओर ले
जाता रहा।
नाटक और फिल्म में हालाॅंकि सदियों की दूरी है, फिर भी उनकी परंपराओं
में कुछ साम्य दिखाई देते हैं ; जैसे – नाट्यशास्त्र का तरह फिल्म में भी
उक्त पांचों संधियां अलग अलग अनुपात में उपलब्ध हो जाती हैं या नाटक
की भांति अधिकांश हिंदी फिल्में सुखांत ही होती हैं। इसके अलावा हिंदी
फिल्मों की गीतों की परंपरा भी भारतीय नाटकों की ही देन है।
हिंदी सिनेमा को भली भांति जानने के लिए उसके नाटक के अतिरिक्त अन्य
प्रदर्शनकारी कलाओं के साथ अंतर्सम्बन्धों को समझना आवश्यक है। इन कलाओं
में उत्तर-मध्य भारत की रास और स्वांग परंपराएं प्रमुख हैं। स्वांग उन्नीसवीं
शताब्दी की लोक नाट्य शैली का प्रधान स्वरूप माना जाता है। यह एक प्रकार
का गीतिनाट्य है, जिसे नगाड़ों की लय पर उंचे स्वरों में गाए जाने वाले गीतों
के रूप में प्रस्तुत किया जाता है।
अति सुंदर।
Roopkumar2012
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धन्यवाद
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