लोककथा: रोटी गिण गिण
बामण चैपाड़ मोड़ि बेर बैठ, मणि टुमटाम करि बेर आंग बरक्यै,
और बोलाणाः’’ दुर्र स्यूनाई, आठ रोटी सोल छ्यां, चार यां चार
कां ? बता त वे सोकारिणी। ल्या धरि दे उनन कैं लै द्याव्ताक
अधिन। बामणि त डरा का मारी थरथरै गे। कुण लागि, ‘‘माफ
करौ हो इष्टो। हम मनखिया भयां। नर बनरनाका कैल गल्ति हई
जैंछ। तुम सांच छौ, दूदक दूद पांणिक पांणि करछा हो भगवान।
मैं रोजै आदुक रोटा चैखाक ताला लुकै दिंछिं।’’ योस कून कूनैं
बामणि अठाआठ रोटा निकालि ल्यै और बामणाक मुख थैं धरि दि।
जरा देर और कामि कुमि बेर बामण त खुठ लंब करि बेर भैगे,
जस वीक आंगक द्याव्त घरी गै हो। उदिन बामणाक हिस्स में लै
चार र्वाटा पड़। खान खानै बांमण बोलण आपणि बामणि हुंणिः देख
वे, भोल बटिक या बिंय जस झन फोकियै, कि हमारा उनार आंग
योस उंछ, उस उंछ। यो द्याबतैकि हाव भै। कबखते ऐई गे, कबखतै
नीं उंनिं।’’ बामणैल त कै दि पर सैणिक पेट में बात कां रुंछि। रात
भरि बामणि कै कलबलाट हई रै कि कब रात व्यो, कब मैं और सैणिन
कैं बतुं। झुकमुक हुनैं बामणि फोंल पकड़ि बेर नौल हुं बाट लागि। वां
द्वि एक संगिणि लै उकै मिलि गे। बामणि कूंण लागिः ‘‘हमारा
घरवालनाक आंग त हो साच्छाइ द्याव्त उंछ। हई लै बतै दिंछ, हुुणि
लै बतै दिंछ, और चुलाक र्वाटा लै गिणि बेर बतै दिंछ हो।’’ सैंणिनैंकि
खाप भै। व्याल हुन हुन तक गौं भरि में बामणाक आंगक द्याव्त
पिरख्यात हैगे। गौं पनैं नैं, आस पास पन लै बात पुजण लागि। क्रमषः