लोकगीत : चांचरी और छपेली :
चांचरी : चांचरी संभवत: झोड़े का ही प्राचीन रूप है
और यह उससे मिलता जुलता भी है। चंचरीक की भांति
वृत्ताकार घेरे में क्रमशः आगे बढ़ते हुए और पीछे हटते
हुए घेरे को घटाते बढ़ाते रहते हैं। अल्मोड़ा, नैनीताल में
इसे भी झोड़ा कहते हैं। किंतु चांचरी में पद संचालन अपेक्षा
कृत मंद होता है तथा स्वरों के आरोह अवरोह की गति भिन्न
होती है। इनमें झोड़े की अपेक्षा धार्मिक भावना भी अधिक रहती है।
छपेली : छपेली नृत्य गीत में पुरूष हुड़का वादक गाता तथा
नृत्य करता है और स्त्री अपनी नृत्य मुद्राओं तथा भाव-भंगिमा से
गीत के भावों को व्यक्त करती हैं। श्रव्य तथा दृश्य का यह सुंदर
मेल छपेली गीतों की प्रमुख विशेषता है। छपेली के नृत्य तथा गीत
दोनों ही में यौवन का उल्लास झलकता है। छपेली गीतों की एक पंक्ति
टेक होती है, जिसे गायक दो पंक्तियों के अंतरे के बाद दोहराता है।