उत्तराखण्ड: नगपद क्षेत्र :
पहाड़ी नदियों द्वारा बहाए गए पत्थरों और कंकड़ों से निर्मित भाबर
वाले भूभाग अर्थात् समुद्र की सतह से 370 मीटर से 560 मीटर
तक की उंचाई वाले जंगली इलाके को नगपद क्षेत्र कहा जा सकता है।
नैनीताल जनपद के हल्द्वानी और रामनगर तथा चंपावत जनपद के
टनकपुर व बस्टिया आदि स्थान इसी क्षेत्र में आते हैं।
भाबर, कुमाऊं के लोगों का आदि काल से ही चरागाह रहा है। जाड़े
के दिनों में पहाड़ी कृषक अपने परिवार और पषुओं सहित इस समतल
सुहावनी भूमि में आ जाया करते थे। घने जंगलों के मध्य बीच-बीच में
कुछ खत्ते साफ करके वहां झोपड़ियां बना ली जाती थीं। इन जंगलों में
साल, षीषम, हल्दू आदि के मध्य बांस की घनी झाड़ियां भी होती थीं।
षारदा नदी के निकट के भूभाग को तल्लादेष का भाबर कहा जाता है।
इसमें चीनी, पडवानी, कुलोनियां आदि नाले हैं। किसी वर्ष एक नाले में
पानी अधिक रहता है तो कभी दूसरे में।
भाबर के ये नाले अपनी बीस मील की लंबाई में स्थान-स्थान पर दूसरे-
दूसरे नामों से पुकारे जाते हैं। लैबार से सुसी तक का भाबर चौभैंसी भाबर
कहलाता है। इस भाबर में मारवा के पास एक बड़ा दलदल है। देवपा और
सूखी नालों के बीच पहाड़ों के तले के कुछ जंगल पिछली सदी के अंत में
ही साफ कर लिए गए थे, जहां जाड़े के दिनों में छोटी-बड़ी बहुत सी बस्तियां
बस गई थीं। यह भाबर चोरगलिया भाबर कहलाता है। सूखी नाले के भी पष्चिम
में छखाता भाबर है। इसमें गौला नदी बहती है। हल्द्वानी इस भाबर का मुख्य
केन्द्र है। चैनथल भी छखाता भाबर में है, किंतु उसके आगे कालाढूंगी कोटाभाबर
में है। कोटाभाबर की मण्डी चिलकिया थी, किंतु कमिष्नर रैमजे द्वारा रामनगर
के बसाए जाने के बाद रामनगर मुख्य व्यापारिक केन्द्र बन गया है।
बहुत अच्छा लेख है।
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धन्यवाद
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