सिनेमा: नाटक:
यूनान के महान दार्शनिक अरस्तू का मानना था कि मानव
स्वभाव से ही नकलची होता है और उसे लोगों, कार्यों और
गतिविधियों को दोहराने में आनंद आता है। उन्होंने यह सिद्धांत
भी प्रतिपादित किया कि मनुष्य इस तरह के अभिनय को दर्शक
बनकर देखना भी पसंद करते हैं। इस तरह के अभिनय की रंगमंच
पर प्रस्तुति का उदाहरण मिस्र एबीडोस नाम के एक अत्यंत पवित्र
स्थान पर मिलता है। कहा जाता है कि ई. पू़. 2500 से 500 ई.
तक ये धार्मिक नाटक प्रस्तुत किए जाते थे, जो एबीडोस धार्मिक
नाटक के नाम से प्रसिद्ध थे।
भारत में भी नाटक अत्यंत प्राचीन विधा रही है। भरतमुनि ने ऋग्वेद
से संवाद, यजुर्वैद से अभिनय, सामवेद से संगीत तथा अथर्ववेद से
रस को समन्वित कर नाटकों की परंपरा को जन्म दिया, जिनके
माध्यम से धार्मिक, पौराणिक और ऐतिहासिक कथाओं को जनसामान्य
तक सहजतापूर्वक पहुंचाया जा सका।
अवस्थानुकृतिर्नाट्यम् – यूनान की तरह भारत में भी नाटक को अवस्था
की अनुकृति ही माना गया है। प्राचीन भारतीय नाटक संस्कृत में उपलब्ध
हैं, जो तब भारत की सामान्य व्यवहार की भाषा थी। इन नाटकों का प्रारंभ
1500 से 500 ई. पू. के बीच माना जाता है।ये नाटक दुखांत या सुखांत
न होकर मानव भावनाओं से संबंधित रस सिद्धांत पर आधारित होते थे।
Thanks. नाटकों के इतिहास की जानकारी के लिए।
roopkumar2012
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