लोकगीत : नृत्य प्रधान :
कुमाऊं के ‘नृत्य प्रधान लोकगीत’ संगीत व नृत्य के साथ इतने
एकात्म हैं कि इनका नामकरण नृत्य शैलियों के ही आधार पर ही
हुआ है। इनकी लय एवं छंद रचना नृत्यों की गति से निर्धारित
होती है। ये गीत मुख्यत: मेलों-त्योहारों या विशेष अवसरों पर गाए
जाते हैं। स्थानीय भेदों से इनमें विशिष्टता उत्पन्न हो जाती है।
प्रमुख रूप से ये तीन प्रकार के हैं – झोड़ा, चांचरी एवं छपेली।
झोड़ा : झोड़ा कुमाऊं का एक सामूहिक नृत्यगीत है। वृत्ताकार
घेरे में एक दूसरे की कमर अथवा कंधों में हाथ डाले स्त्री पुरूषों
के मंद – संतुलित पद संचालन से यह नृत्य गीत प्रारंभ होता है।
वृत्त के केंद्र में खड़ा हुड़का वादक गीत की प्रथम पंक्ति गाता है,
जिसे टोली के सभी लोग दोहराते हैं। विषय वस्तु की दृष्टि से इस
के अनेक प्रकार माने जाते हैं –