उत्तराखण्ड: महाहिमालय:
लघु हिमालय के उत्तर की ओर, प्रायः इसी के समानांतर, पष्चिम
से पूर्व की ओर, महाहिमालय श्रेणी फैली है; जिसे महाभारत में
अंतर्गिरि कहा गया है। इसके अनेक षिखर सदा हिम से ढके रहते हैं।
कुल मिलाकर कुमाऊं की प्राकृतिक स्थिति एक जैसी नहीं है। एक तरफ
उत्तर में बर्फ से ढकी हुई पर्वत श्रंखलाएं हैं, तो दूसरी तरफ दक्षिण में
ऊबड़-खाबड़ पहाड़ियो की कतारें हैं। कहीं हरे-भरे सीढ़ीदार खेतों वाली
घाटियों की समृद्धि है, तो कहीं प्रखर वेग से बहने वाली नदियों की
कलकल से प्रफुल्लित वनप्रदेष हैं। इन सब को तीन क्षेत्रों में वर्गीकृत
किया जाता है –
नग क्षेत्र
पर्वतीय संपदाओं एवं आपदाओं से संपृक्त सौन्दर्य तथा संघर्ष से रंजित
भूभाग अर्थात् समुद्र की सतह से 560 मीटर से 7000 मीटर तक की
उंचाई वाले क्षेत्र को नग क्षेत्र कहा जा सकता है। कुमाऊं का लगभग
4/5 भाग नग क्षेत्र के अंतर्गत आता है। इस क्षेत्र में चंपावत, पिथौरागढ़,
बागेष्वर व अल्मोड़ा जिले का संपूर्ण भाग और नैनीताल जिले का नैनीताल
तहसील क्षेत्र आता है।
पहाड़ में नाना प्रकार की जलवायु पाई जाती है। बर्फानी जगहों में सदा
प्रचण्ड षीत होता है। हिमाच्छादन और तापमान की न्यूनता के कारण जिन
भूभागों में वनस्पति के नाम पर केवल ग्रीष्म ऋतु में बुग्गी घास उगती है,
उन्हें बुग्याल कहा जाता है। इससे नीचे के इलाकों में सुबह-षाम अच्छी
ठण्ड रहती है। यही कारण है कि मैदानी इलाकों के लोग ग्रीष्मऋतु में यहां
के नगरों में छुट्टियां मनाना पसंद करते हैं।
जहां चीड़ के पेड़ों की प्रचुरता है, वहां की जलवायु क्षय रोगियों के लिए
लाभदायक मानी जाती है। जाड़ों में बर्फ का गिरना अब कम हो गया है,
तथापि पर्वतों में प्रकृति की लीला का आकर्षण कम नहीं हुआ है। पहाड़ों
की घाटियों में जाड़ों में सर्दी तथा गर्मियों में गर्मी बढ़ जाती है।